ये जो लम्हा दिखाई देता है,
खवाब टूटा दिखाई देता है,
आहट हरदम उसी की सुनाई देती है,
उसका ही अक्स हरदम दिखाई देता है,
इस बेवफा शहर के हुजूम-ए-तन्हाई में,
हर कदम वो साथ चलता दिखाई देता है,
नशा-ए-इश्क जैसा वो मुझे दिखाई देता है,
उसके होने से सामान रोशन दिखाई देता है,
प्यास दीदार की बुझती दिखाई नहीं देती अब,
अब्रा इश्क का अब खुलता दिखाई देता है,
क्या रखा है यहाँ तेरे बगैर मेरे सनम,
"राज" ये सारा जहान उजड़ा दिखाई देता है।
