ऐ खूदा,
उस दिल-ए-रूह से बच,
इस दूनिया मे आके ऐसा खेल मेरे मौला तू रच,
मिट जाए सारे झूठ रह जाए बस सच ही सच,
तकदीर तो ऊपर वाले का अनोखा खेल है,
न जाने यहाँ आके किसका किस किस के साथ मेल है,
लगता है अभी मेरे आगे पीछे दायेँ बायेँ कुदरत की बनी अनोखी जेल है,
लेकिन मेरे मौला इसके आगे तेरा ये भेजा वन्दा बिल्कुल फेल है,
बच जाऊ मै,भाग जाऊ मैं क्या तूने इस दूनिया मे बनाई कोई ऐसी रेल है,
या अल्ला…,
थक गया हूँ, डर गया हूँ…,
सच छुपा-छुपा के, ऐसा महसूस होता है के मै अपने अन्दर ही अन्दर घुट-घुट के मर रहा हूँ,
अन्दर ही अन्दर स़ड़ रहा हूँ,पेड़ मे लगे पत्ते जैसा झड़ रहा हूँ,
जलती लौ मे जैसे कड़ रहा हूँ,
ऐ खुदा मेरे जुल्मो को मिटा दे , मुझे सच बस सच की राह मैं बिठा दे |
